भागवत कथा का भव्य शुभारंभ
श्रीमद्भागवत कथा का श्रीगणेश करते हुए अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त वक्ता श्रीविद्या सिद्ध संत एवं ज्योतिष सम्राट पूज्य राघव ऋषि जी ने कहा कि साधना से ही साधन स्थिर होता है। भागवत कथा तीनों प्रकार के तापों को नष्ट करती है।
ऋषि सेवा समिति, पटना के तत्वावधान में भागवत कथा का भव्य शुभारंभ हुआ जिसकी कलश यात्रा नागाबाबा ठाकुरबाड़ी मंदिर से प्रारम्भ होकर स्थान-स्थान पर पुष्पवृष्टि द्वारा स्वागत होते हुए कदमकुआं स्थित बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन कथास्थल पहुंची । आकर्षण का केन्द्र रहे 1 हाथी, 3 ऊंट एवं 5 घोड़े यात्रा की अगुआई कर रहे थे । मुख्य यजमान श्रीमती रेणु देवी एवं श्री सागर कुमार भागवत पोथी सिर पर रखकर चल रहे थे । उपस्थित जनमानस हेतु विभिन्न पड़ावों पर शीतल पेय पदार्थों एवं जल की व्यवस्था की गई थी । समय समय पर जल छिड़काव कर मार्ग को सुगम बनाया जा रहा था । पीले वस्त्रों में 151 महिलाएं कलश लिए हुए बैंड-बाजे सहित मंगलगान करते हुए चल रहीं थीं। बग्घी पर सवार पूज्य ऋषि जी कथाप्रेमियों का अभिवादन स्वीकार कर रहे थे । क्षेत्रवासियों का असीम उत्साह देखने को मिला। प्रमुख रूप से क्षेत्रीय विधायक श्री अरुण सिन्हा, वार्ड पार्षद आशीष सिन्हा, राहुल यादव की उपस्थिति रही ।
मुख्य यजमान द्वारा व्यासपीठ पर अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त वक्ता श्रीविद्या सिद्ध एवं ज्योतिष सम्राट पूज्य राघव ऋषि जी का सविधि पूजन किया।
मा उपमुख्यमंत्री श्री विजय सिन्हा , पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री राम कृपाल यादव, मा मंत्री बिहार सरकार नितिन नवीन, मा विधायक अरुण सिंह जी,बिहार भाजपा कोषाध्यक्ष नितिन अभिषेक, श्री अनिल सुलभ , अध्यक्ष हिंदी साहित्य सम्मेलन ,वार्ड पार्षद आशीष कुमार सिंहा, संजय कुमार सायं 6 बजे से कार्यक्रम का दीप प्रज्वलन से शुभारम्भ कर पूज्यश्री का माल्यार्पण द्वारा स्वागत किया।
भागवत कथा का प्रारम्भ करते हुए पूज्य ऋषि जी ने कहा कि काशी की ज्योतिर्मयी भूमि पर अक्षय कथा को प्राप्त कर हम सभी धन्य हैं ताकि अक्षय लाभ प्राप्त हो सके। कथा के माध्यम से सच्चिदानंद प्रभु की प्राप्ति होती है। जो आनन्द हमारे भीतर है उसे जीवन में किस प्रकार प्रकट करें यही भागवत शास्त्र सिखाता है। जैसे दूध में मक्खन रहता है फिर भी वह दिखाई नहीं देता, मंथन करने पर मिल जाता है। इसी प्रकार मानव मन को मंथन करके आनंद को प्रकट करना है। मनुष्य जीवन का लक्ष्य है परमात्मा से मिलना। उसी का जीवन सफल है जिसने प्रभु को प्राप्त किया।
भागवतशास्त्र का आदर्श दिव्य है। घर में रहकर के भगवान को कैसे प्राप्त किया जा सकता है। इस शास्त्र में सिखाया है। गोपियों ने घर नहीं छोड़ा। घर गृहस्थी का काम करते हुए भी भगवान को प्राप्त कर सकी। एक योगी को जो आनन्द समाधि में मिलता है वही आनंद आप घर में रहकर भी प्राप्त कर सकते हैं। पूज्य ऋषि जी के एकमात्र सुपुत्र सौरभ ऋषि जी ने गणपति वन्दना “गौरी के नंदन की हम पूजा करते हैं” का गान किया सब भावविभोर हो अनेक श्रद्धालु नृत्य करने लगे। भागवत की रचना व्यास जी ने की परन्तु इसे गणेश जी ने लिखा है इस कथा का माहात्म्य है कि जिस समय शुकदेव जी परीक्षित को कथा सुना रहे थे उस समय स्वर्ग के देवता आए एवं उन्होंने कहा स्वर्ग का अमृत हम राजा को देते हैं और बदले में यह कथामृत आप हमें दीजिए। शुकदेव जी ने पूछा तुम्हें कौन सा अमृत पीना है? इस पर राजा ने कहा कि स्वर्ग का अमृत पीने से पुण्यों का क्षय होता है परन्तु कथामृत पीने से जन्म जन्मांतर के पापों का क्षय होता है व जीव पवित्र है जाता है। अतः मैं इस कथामृत का ही पान करूंगा। मनुष्य के भीतर ज्ञान और वैराग्य जो सोए हुए हैं उन्हें जागृत करने के लिए यह कथा है। इस हृदयरूपी वृन्दावन में कभी कभी वैराग्य जागृत होता है परन्तु स्थाई नहीं रहता उसे स्थायित्व इस कथा से मिलता है।
कथा के माहात्म्य की चर्चा करते हुए पूज्य श्री जी ने बताया कि तुंगभद्रा नदी के किनारे आत्मदेव नाम का ब्राह्मण रहता था उसकी पत्नी धुंधली क्रूर स्वभाव की थी। पुत्रहीन होने के कारण आत्मदेव एक दिन आत्महत्या करने जाता है। मनुष्य शरीर ही तुंगभद्रा है इसमें जीवात्मा रूपी आत्मदेव निवास करता है तर्क कुतर्क करने वाली बुद्धि ही धुंधली है किसी सन्त की कृपा से विवेक रूपी पुत्र का जन्म होता है जो जीव का कल्याण करता है। धुंधली का पुत्र धुंधकारी अनाचारी था जो व्यक्ति अनाचारी होता है वह क्रमशः रूप,रस, गन्ध, शब्द, व स्पर्श रूपी पांच वेश्याओं से फंस जाता है जो इस जीवात्मा की हत्या कर देती है फलत वह प्रेत योनि में जाता है जो भागवत शास्त्र के माध्यम से मुक्त होता है।
भगवान सच्चिदानंद हैं आनन्द मनुष्य धन, पद, परिवार व प्रतिष्ठा में ढूंढता है जबकि आनन्द उसके भीतर है। जीव तो ईश्वर का है तो भी वह उनको पाने का प्रयास नहीं करता इसी लिए वह दुखी होता है नास्तिक भी अन्त में थक हारकर भगवान को शान्ति के रूप में खोजता है जो साधन जन्य नहीं स्वयंजन्य है। उसी जीव का जीवन सफल होता है जो प्रत्यक्षत प्रभु का दर्शन कर मुक्त होता है नैमिषारण्य की पावन भूमि में शौनक आदि अट्ठासी हजार ऋषियों ने श्री सूत जी से कथा का श्रवणपान किया। देवर्षि नारद जी ने अपने पूर्व जन्म की कथा को व्यास जी से बताते हुए कहा कि मेरा जीवन संत और सत्संग से सुधरा है। राधा जी की सिफारिश पर तम्बूरा प्रसाद के रूप में दिया और कहा मुझसे अलग हुए अधिकारी जीवों को हमारे पास लाओ यह वीणा लिए मैं संसार में भ्रमण करता हूं और अधिकारी जीवों को जैसे ध्रुव, प्रह्लाद आदि को भगवान के पास ले गया। जो भक्त मिलते हैं उन्हें प्रभु के पास ले जाता हूं।
महाभारत युद्ध की चर्चा करते हुए पूज्य ऋषि जी ने कहा कि संपत्ति का मोह जहां होता है वहां महाभारत और त्याग रामराज्य को लाता है। परीक्षित गद्दी पर बैठे और एक दिन सोने का मुकुट जो अनीति से प्राप्त धन था धारण किया। अनीति से कमाया हुआ धन कमाने वाले और वारिश दोनों को दुखी करता है इस कारण उन्होंने उस दिन अनेकों हिंसा की और एक सन्त का अपमान किया। अन्त में शुकदेव जी आकर परीक्षित को धन्य किए।
कथा के अन्त में सर्वश्री कृष्णा सिंह कल्लू, राजेश गुप्ता, अमरदीप पप्पू, राजेश लोहिया, खुशबू कर्ण, सिद्धू गुप्ता, सोनू केसरी, गौतम कुमार, संजय जायसवाल ,शिव गुप्ता, पिंटू कुमार, जयंत गुप्ता,अर्जुन चंद्रवंशी,सहित अनेक भक्तों ने आरती की। संयोजक श्री दिगम्बर वर्मा ने बताया कि मंगलवार की कथा में कपिलोपाख्यान, देवहूति कर्दम संवाद एवं ध्रुव चरित्र का भावपूर्ण प्रसंग होगा।